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भविष्य, आशा, सपना... इन शब्दों का उपयोग किशोर युवाओं का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है। लेकिन आजकल उनका सपना गायब हो रहा है। वर्तमान समय में भले ही लोग भौतिक रूप से समृद्ध होते हैं और उनकी बौद्धिक क्षमता बढ़ती जाती है, लेकिन किशोर–किशोरियां तन–मन से थके–हारे होते हैं। क्योंकि उन पर कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते पढ़ाई का बोझ बढ़ रहा है और वर्तमान में स्वार्थवाद हावी हो रहा है।
16 जुलाई को नई यरूशलेम फानग्यो मंदिर में “ग्रीष्मकालीन किशोर चरित्र निर्माण प्रशिक्षण 2017” आयोजित किया गया। इस बार चरित्र निर्माण प्रशिक्षण माता के द्वारा संचालित किया गया और वह बाइबल पर आधारित प्रशिक्षण था। इसमें ग्यंगी प्रांत के मिडिल और हाई स्कूल के छात्रों, पुरोहित कर्मचारियों और विद्यार्थी विभाग के शिक्षकों सहित लगभग 2,500 सदस्यों ने भाग लिया।
प्रशिक्षण के पहले भाग में माता ने सभी उपस्थित छात्रों से कहा कि वे परमेश्वर की संतान होने के नाते गर्व करें, और “परमेश्वर की संतानों का जीवन” शीर्षक के तहत उन्हें शिक्षा दी। पूरे प्रशिक्षण के दौरान माता ने परमेश्वर के प्रेम से मिलते–जुलते चरित्र और शिष्टाचार पर जोर दिया और कहा, “परमेश्वर अपनी संतानों को प्राणों से भी अधिक प्रिय मानते हैं, इसलिए उन्होंने उनके लिए अपने प्राण दे दिए। आप ऐसी संवेदनशील अवधि, यानी किशोरावस्था में हैं जब आप अत्यन्त ओजस्वी और क्रियाशील हैं, लेकिन आपको सांसारिक मामलों से डगमगाना नहीं चाहिए और दूसरों का ख्याल रखना और अपने क्रोध, कर्म और वाणी पर संयम रखना चाहिए।”
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इसके अलावा, उन्होंने स्वयं अभिवादन करने का तरीका विस्तार से समझाया और “अनुचित व्यवहार कभी न करने वाले” प्रेम की विशेषता के बारे में बताते हुए कहा, “ ‘तुम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना,’ इस वचन की नींव अच्छा व्यक्तित्व है, और अच्छे व्यक्तित्व की शुरुआत शिष्टाचार है, और शिष्टाचार की बुनियादी बात अभिवादन है। यदि आप घर से ही अपने माता–पिता और भाई–बहन का प्रेमपूर्ण शब्दों से अभिवादन करना शुरू करें, तो आप कहीं भी, किसी के लिए भी प्रेम को अमल में ला सकते हैं।” माता ने आशा जताई कि किशोर–किशोरियां परमेश्वर के प्रेम में धर्मी और अच्छे गुणी व्यक्ति के रूप में बड़े होते हुए तारे जैसे उज्जवल भविष्य का सपना देखें।(रोम 12:2; 1कुर 13:4–5; इफ 4:29)।
प्रशिक्षण के दूसरे भाग में प्रधान पादरी किम जू चिअल ने “सफल व्यक्ति नहीं बल्कि गुणी व्यक्ति बनो” शीर्षक के तहत शिक्षा दी। उन्होंने कहा, “जो अच्छा व्यक्तित्व और सही धारणा रखता है वही सचमुच एक सफल व्यक्ति है। उसका उदारहण तीमुथियुस है। वह बचपन से ही पवित्रशास्त्र से शिक्षित किया गया था(1तीम 3:14–17) और वह बाद में ऐसे अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति के रूप में बड़ा हुआ जो बहुत लोगों से प्रशंसा प्राप्त करता था, और उसने प्रेरित पौलुस के साथ सुसमाचार का प्रचार किया।”
उन्होंने यह भी कहा, “मैं उम्मीद करता हूं कि किशोर–किशोरियां भी जो इस युग में स्वर्गीय माता के द्वारा शिक्षित किए गए हैं, ऐसे महान चरित्र वाले व्यक्तियों के रूप में बड़े होंगे जो अपने पड़ोसियों, देश और मानवजाति के लिए सेवा करते हैं और परमेश्वर के प्रेम को प्रसारित करते हैं।” और उन्होंने उनसे आग्रह किया, “कृपया तीमुथियुस की तरह व्यक्तित्व रखिए, और दाऊद, दानिय्येल और प्रेरित पौलुस की तरह जो हमेशा परमेश्वर से प्रेम करते थे, बड़ा विश्वास करते हुए बड़ा सपना देखिए और गुणी और मूल्यवान जीवन जीइए।”
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प्रशिक्षण के समाप्त होने के बाद छात्रों ने आपस में और पुरोहित कर्मचारियों और विद्यार्थी विभाग के शिक्षकों का बेहद ही शालीन तरीके से अभिवादन करते हुए उस दिन दी गई शिक्षाओं पर तुरन्त अमल किया। पार्क जंग युन(17 वर्ष, सुवन से) ने कहा, “मैं लगातार इस पर सोच–विचार करती थी कि अपने दोस्तों के साथ पढ़ाई को लेकर प्रतिस्पर्धा करने के माहौल में कैसे मैं सफल हो सकती हूं। लेकिन अब मुझे अपना रास्ता मिल गया है। मैं परमेश्वर के वचन के अनुसार अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करूंगी और अच्छी तरह पढ़ाई करूंगी ताकि मैं न केवल इस दुनिया के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के लिए भी एक गुणी व्यक्ति, यानी सचमुच एक सफल व्यक्ति बन सकूं।”
किम ह्यन डोंग(18 वर्ष, यूजियान्गबु से) ने कहा, “मुझे अपने माता–पिता के लिए खेद महसूस हो रहा है। मैंने अक्सर अपने माता–पिता के साथ झगड़ा किया था, इसलिए मैं और मेरे माता–पिता थक गए थे। इस बार मैंने परमेश्वर के प्रेम को महसूस किया है जिन्होंने इस प्रशिक्षण के द्वारा मेरे खुरदरे व्यक्तित्व को सुधारा है। मैं आभारी और खुश हूं। आज जब मैं घर लौट जाऊं, मैं तहे दिल से अपने माता–पिता का अभिवादन करूंगा।”
विद्यार्थी विभाग के शिक्षकों ने कहा कि यह प्रशिक्षण उनके लिए भी आवश्यक था। शिक्षक सोंग ये ओक(आनसान से) ने कहा, “आजकल किशोरों की अपराधों में शामिल होने की ज्यादा खबरें मिल रही हैं। यह एक दुखद बात है। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें पर्याप्त प्यार और ठीक समय पर उचित प्रशिक्षण नहीं मिल पाया है। पहले मुझे पता नहीं था कि मुझे एक शिक्षिका के रूप में कैसे छात्रों का नेतृत्व करना है, लेकिन आज मुझे पता चला है कि अभिवादन, शिष्टाचार इत्यादि जैसी बुनियादी बातें ही सबसे जरूरी बातें हैं जो उन्हें करनी चाहिए। मैं उन्हें प्यार से सिखाऊंगी ताकि वे अपने माता–पिता का आदर कर सकूं और दूसरों का ख्याल रख सकूं।”
उबुनथु(UBUNTU) यह अफ्रीका की बांतु जनजाति का एक शब्द है, जिसका मतलब है, “मैं हूं क्योंकि आप हैं।” इंसान अकेले नहीं रह सकते हैं। हम दूसरों के साथ विभिन्न रिश्तों में बंधकर जीते हैं। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि एक सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने के लिए हम कैसे एक साथ मिलकर जी सकते हैं। यह कोई कठिन और बड़ी बात नहीं है। अभिवादन और रिआयत करना, मुस्कुराना आदि छोटी बातों पर हम ज्यादा ध्यान नहीं देते, लेकिन ये सब छोटी सी बातें मिलकर हमारे जीवन को अधिक मूल्यवान और शानदार बनाती हैं। उस दिन वह नारा भी जो सभी छात्रों ने जोर से एक स्वर में लगाया, एक छोटे अभ्यास के साथ शुरू होगा।
“हे किशोरो, बड़ा सपना देखो, उज्जवल भविष्य के लिए!”